कैसे बत्लाऊ
में, में कितना
चाहता हूँ तुम्हे
कैसे मनाऊ
तुम्हे, के तुम
भी चाह लो
मुझे
क्यूँ मेरी बातों
का नहीं करती
यकीन तुम
क्यूँ कहती हो
में जूठा हूँ,
नहीं प्यार मुझको
कैसे समझाऊं
तुम्हे कैसे यकीन
दिलाऊं
के जिसने
चुराया है नींद-ओ-चैन
मेरा, वो तुम
ही हो
वो तुम
ही हो, जिसकी
हर बात खुश्बू
सी सजती है
वो तुम
ही हो, जिसकी
हसी बारिश की
बूँदों सी चुभती
है
जिस के
आने से, एक
भीनी सी हवा
चलती है,
वो तुम
ही हो, जिस
के ख्वाबों से
मेरी महफ़िल सजती
है
वो तुम
ही हो, जिस
में खो जाना
चाहता हूँ में
वो तुम
ही हो, जिस
में हर वक़्त
खोया रहता हूँ
में
‘जाओ बात
नहीं करनी’, बोल
कर जब रूठ
जाती हो
जाने अंजाने
में मुझे मायूउस
छोड़ जाती हो
में फिर
रात भर तुम्हारी
यादों में खोया
रहता हूँ
अपने ही
आँसुओं में खुद
को भिगोया रहता
हूँ
मिलोगि कभी तुम
मुझे, यह ख्वाब
पिरोए बैठा हूँ
मेरे हाथों
में होगा तेरे
हाथ, यह तस्वीर
संजोए रहता हूँ
में जानता
हूँ, बस झूठ
परोसती हो तुम
‘नहीं चाहती में
तुम्हे’, जब यह
कहती हो तुम
याद है
तुम्हे वो हर
बात, जो है
बरसो पुरानी
फिर भी
कहती हो के
‘नहीं याद करती
में तुम्हे कभी
‘
में जानता
हूँ, मेरा खुदा
जानता है
अपनी दुआओं
में अक्सर मेरी
खैरात चाहती हो
तुम
अपने हाथों
में थामे मेरे
हाथ,
मेरी आँखों
में डाल के
अपनी आँखें
कह दो
एक बार बेझिझक,
नहीं चाहती हो
मुझे
चलो, यह
भी आज़माइश, तुम
कर ही लो
……
मुझ को
जला कर, तुम
खुद की अग्नि
परीक्षा कर ही
लो
ख्वाहिशों को मेरी
मोक्ष, तुम तार
ही दो
में जानता
हूँ, तुम कभी
यह ना कर
पओगि
अपनी चाहत
को भले ही
छुपा लो, कभी
ना जुठला पाओगि
क्यूँ की, जब
भी मुझे छूओगि,
मुझ से नज़रे मिलाओगि,
मेरे नबस
में अपनी धड़कन,
आँखों में खुद
की तस्वीर पाओगि
फिर कैसे
यह झूट दोहराओगि,
कैसे होठों को
अपने समझाओगि
नहीं प्यार
हम में, यह
कैसे सिद्ध कर
पाआओगी?